अच्छे नहीं लगते


अच्छे नहीं लगते (कविता )

अभी जवान हो मिलो हमसे 
जवानी के बाद ये ख्यालात अच्छे नहीं लगते 
तुम रोज रोज क्यों बहेश करते हो हमसे 
ये प्यार भरे दिल जलते अच्छे नहीं लगते 


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इसिलए ये गुजारिश की है तुमसे 
की आओ पास मशवरा कर लो 
आप यूँ रोज -रोज झगड़ते अच्छे नहीं लगते

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अब ये मान कर मेरे पास चले आओ प्रियतम मेरे 
तुम मोम हो पत्थर बनते अच्छे नहीं लगते 
अगर मेरी कोई बात बुरी तुमको लगी प्रियतम मेरे 
कम से कम उस बात का जिक्र तो करो हमसे 


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मुझे  शिकवा गिला नहीं तुमसे 
लेकिन अफसोस इस बात  का है 
अकेले तुम ही शामिल नहीं इसमे 
ये वारदात तो जमाने का है

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अपनी हद में रहे जमाना वरना 
फटे कपडे हर इंसान पर अच्छे नहीं लगते 
तुम सुन लो मुझको  ये जमाने वालों 
आपके अपने मकान भी पत्थर के हैं 
आपके हाथ में पत्थर अच्छे नहीं लगते 

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अभी तो दौर है ये बारिश का 
सूरज से कहो अभी ठहर जाये 
इस दौर में ये चमक ये उजाले अच्छे नहीं लगते 
अभी जवान हो तुम खिलखिलाकर हसो 
बुढ़ापे में पपले लोग अच्छे नहीं लगते |