देश की राजनीति भी अजीब होती है
हर एक नेता के नसीब होती है
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कोई जीत के हार जाता है तो कोई हार के जीत जाता है
जो हार के जीत जाता है वही अपनी कुर्सी जमाता है
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कुछ नेता कुछ करके दिखाते है
तो कुछ बैठ के पाव भाजी खाते है
अपनी बीवी को बनारसी साड़ी पहनाते है
कुर्सी को तोड़-तोड़ कर लाखों का बिस्तर बनाते है
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बनके नेता रोब खूब जमाते है
बाल तो पक गये डाई भी लगवाते है
पहन के कोट पैंट जलवा खूब बनाते है
मिल जाये जो चश्मा तो वो भी लगा लेते है
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देश की जनता को खून के आँसू रुलाते है
सब्जियों के दाम सर पे चढ़ाते है
बेचारे गरीब रो-रो कर मर जाते है
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बेशर्म नेता को शर्म नहीं आती है
देश की जनता को कैसे रुलाती है
कैसे महंगाई को सर पे चढाती है
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बेचारे गरीब कैसे रह पाते होंगे
कैसे बीवी बच्चों का पेट पालते होंगे
कैसे सारे घर का खर्च चलाते होंगे
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खरीद लो वोट क्यूंकि जनता तो गरीब होती है
आखिरकार देश की राजनीती अजीब होती है
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4 टिप्पणियाँ
Very nice poem, I like it.
जवाब देंहटाएंVery nice poem, heart touching, I like it.
जवाब देंहटाएंVery nice poem, heart touching, I like it.
जवाब देंहटाएंVote ki value n rkhne walon netao ke liye.....true lines������nyc
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