बेटियों का दर्द |
एक छोटी कली कीचड़ में पली
माँ -माँ कहकर है पुकार रही
था दर्द जो उसके सीने में
—
कैसे खुद को है कोश रही
क्यों जन्म दिया ये खुदा उसको
जो न दुनियां की रही न माँ की रही
—
था एक फरिस्ता गुज़र रहा
उसने भी मुह फेर लिया
मन ही मन बड- बड करने लगा
—
ये किसका पाप है कहकर कोश दिया
बेदर्द भरे इस जमाने ने न माँ की सुनी
न बेटी की सुनी
—
हर पल हर लम्हे दर्द भरे
कैसे जीती एक माँ की सुनो
जमाने ने माँ को सताया है
—
दहेज़ के लालच में बहू- बेटियों को जिन्दा जलाया है
क्या उसका कोई प्यार नहीं
क्या उसको जीने का अधिकार नहीं
—
क्यों रोका -टोकी करते हैं
क्यों उसको जीने नहीं देते हैं
क्यों घर में उसे बिठाते हैं
—
सबका जीवन अनमोल है
फिर क्यों करता ये पाप है
इंसानों में इन्सान नहीं
क्या ऐसा कोई बाप है
—