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इतना क्यों याद आते हो {कविता } |
यूँ तो तुम हमसे कितने सिकवे गिले करते हो
कभी पास तो बैठो इतना क्यों डरते हो
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तुम समझते नहीं जब अल्फाजों को
तो फिर धड़कन बनकर
इतना क्यू धडकते हो
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कभी रूह को छू लेते हो
तो कभी ख्यालों में आते हो
अगर रहना ही है दूर तो तुम
इतना क्यों तडपाते हो
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यूँ तो डायरी मेरी पढने से रहे
लेकिन इंटरनेट पर शायरियां
तो तुम भी पढ़ते हो
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मेरे लिखे अल्फाजों को
न सही किसी और के
अल्फाजों को तो समझ ही लेते हो
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मेरे प्यार की गहराइयों न सही
पर दूसरों की तरह मुझे
दर्द तो तुम भी दे सकते हो
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इस जमाने में कोई अपना नहीं होता
इसका यकीन तो तुम भी दिला सकते हो
आज जो गुजरी है हम पर इसका
जिक्र तो दुसरो से कर ही सकते हो
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आज हूँ तो लड़ लो झगड लो वरना
दुसरो की तरह दो आंशू
टपकाने तो तुम भी आ सकते हो
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मेरी न सही लेकिन एक बार अपने
धडकते दिल की तो सुन ही सकते हो
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आज नहीं तो कल ये कहानी
बयाँ तो तुम भी कर सकते हो