आदत नहीं हमारी


आदत नहीं हमारी {कविता }
तेरी बाहों में लिपटकर
 रोने की हसरत नहीं रही हमारी 
जो बीत गये हैं लम्हे उनमे
 डूब जाने की आदत नहीं रही हमारी 

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यूँ तो खोजने से मिल ही जाती हैं कस्तियाँ 
लेकिन अब उन कश्तियों में सवार
 होने की आदत नहीं हमारी 

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यूँ तो बोलने से खबर छप ही जाती है 
लेकिन अब  खामोश होने से भी
 पता चलती हैं बाते सारी 

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ये मोहब्बत की दुनिया है यारों 
यंहा उल्फत और फ़साने भी होते हैं 
कभी हम भी करते थे
 हजारों सिकवे गिले तुमसे
अब तेरी याद में मुस्कुराने की
 आदत बन गयी है हमारी 

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कभी मै भी करती थी तुमसे सर्मो ह्यया 
आज बेशर्मो की तरह
 रहने की आदत हो गयी है हमारी 

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इंतजार करती रही मै भी
 तेरी मोहब्बत की गलियों में बैठकर 
लेकिन अब इंतजार की घड़ियाँ नहीं  हमारी 


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पहले कभी एक ताजा
 फूल की तरह खिलती थी मै 
आज सूखी पंखुड़ियों की तरह
 बिखरने की आदत हो गयी है हमारी