कुछ ख़ामोशी (कविता ) |
जब- जब हम चुप रहकर
सब बर्दास्त कर लेते हैं ,
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तब तो दुनियां को
बहुत अच्छे लगते हैं
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पर एकाद बार सच्ची
हक्कीकत बयाँ कर दो ....
तो सबसे बुरे लगने लगते हैं
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जिन्दगी में कुछ ऐसे
पल भी आते हैं ,
गलती किसी की भी हो
दोषी बेक़सूर को ही ठहराते हैं
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ऐसे ही हम कई लोगों से
अनजान रह जाते हैं ,
वो करते क्या हैं
और करना क्या चाहते हैं
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जिंदगी में दो पल आते हैं
जहाँ हम फैसला नहीं कर पाते हैं
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या कोई अपना हो या हम
जिसे अपना बनना चाहते हों
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कुछ लोग बेक़सूर होकर भी
खुद को कसूरवार ठहराते हैं
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और कुछ लोग गलती होते
हुए भी पल्लू झाड लेते हैं
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असमंजस में रह जाता है जीवन
जब दो तरह के लोग जिन्दगी में हों
पर एक के बगैर जिंदगी चलती नहीं
और दुसरे के बगैर संभलती नहीं
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अच्छे और बुरे दो ही लोग होते हैं
हमारी जिंदगी में !
और जब तक न पड़े हथौड़े की मार
हम जिंदगी में सँभलते नहीं !