आज बहुत याद आ रहे हो तुम



आज  बहुत याद आ रहे हो तुम (कविता )
आज बहुत याद आ रहे हो तुम 
दूर होकर भी पास आ रहे हो तुम 
देखा था तुम्हे जब हमने पहली बार 

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सुना था बहुत सीधे हो तुम  यार 
पर जब मैंने तुम्हे जाना तो
 हो जाती थी बाते चार 

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पर जनाब वो तेरा वक़्त -बेवक्त छत 
पर आना और मुझे  देखकर धीरे से मुस्कुराना 
आज बहुत याद आ रहा है |

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तेरा वो रात में बार- बार खाश कर पूछना 
अभी जग रही हो या नहीं 
और मेरा खाशकर ही बताना की अभी जग रही हूँ 
और जब सब सो जाये तो रेलिंग के पास गप्पे मरना 
आज बहुत याद आ रहा है |

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तेरा बार -बार गली में आना 
मुझे देखने के बहाने फूटबाल खेलना
और मेरा सरमा कर छुप जाना  
आज बहुत  याद आ रहा है |

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मंदिर पर बैठ कर हमे निहारना 
और फिर जब छुपके से मै चली आऊ
तो मुझे वंहा न देखकर इधर -उधर ढूंढकर 
तेरा वो परेशान होना 
आज बहुत याद आ रहा है |

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तेरा अचानक से चले जाना और
 मेरा रात बैठकर भगवान् से
फ़रियाद करना की ट्रेन छूट जाये 
और वापस आ जाओ  

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और फिर तेरा रात में वो अचानक से आना 
वो संजोग आज बहुत याद आ रहा है 
आज बहुत याद आ रहे हों तुम 

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जैसे दूर रहकर और भी पास आ रहे हों तुम 
तेरे साथ गुज़ारा हर लम्हा 
आज बहुत याद आ रहा है |

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आज बहुत याद आ रहे हो तुम 
दूर रहकर और भी पास आ रहे हो तुम