तुमको याद करती हूँ



तुमको याद करती हूँ (कविता )

मै जब तनहा बैठती हूँ 
तो तुमको याद करती हूँ
हजारों ख्वाब आँखों में
 एक साथ बुनती हूँ 
हजारों मन में बाते खुद से 
अपने आप करती हूँ 
मै जब तनहा  बैठती हूँ
 तो तुमको याद करती हूँ  |

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कभी हँसना. कभी रोना 
कभी दोनों साथ करती हूँ 
रातों को अक्सर अश्को से
 मै तकिया भिगोती हूँ 
मै जब तनहा बैठती हूँ
 तो तुमको याद करती हूँ 
तेरे साथ गुज़रे लम्हों को
 मै खुद में कैद करती हूँ
मै सर के तकिये से लिपट कर
 तेरा अहसास करती हूँ  
सुबह जब सोकर उठती हूँ 
तो फिर से तेरा ही ख्याल करती हूँ| 

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फिर वाट्साप पर तेरी 
डी पी को मै ज़ूम करती हूँ 
तेरे आने की खुश्बू
 मेरे साँसों में महकती है 
मै जब- जब सांस लेती हूँ
 तेरा एहसास करती हूँ 
तेरे फोटो को निहारकर 
मै दिन की शुरुवात करती हूँ 
मै जब तनहा बैठती हूँ
 तो तुमको याद करती हूँ| 

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जब- जब मिलने आते हों
 तो गले लग कर मै रोती हूँ 
तो तुम सोच सकते हो
 बिछड़ कर कितना रोती हूँ 
मै अपने अतीत के जख्मों पर 
खुदी बरसात करती हूँ |

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मै जब -जब उन बिछड़े 
पलों को याद करती हूँ 
उन यादों का मंजर फिर 
मेरी आँखों में पिघलता है 
मेरी आँखों का पानी भी
 मुझसे कई सवाल करता है 
मै उन सरे सवालों का 
उत्तर खुद ही बन जाती हूँ 
मै जब तनहा बैठती हूँ 
तो तुमको याद करती हूँ|



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कभी जाना न छोड़ करके 
मै टूटी हूँ जैसे शाख के पत्ते 
मुझे मुझमे जोड़ने का एक
 जरिया तुम ही बनते हो 
मै तेरे इश्क में रहने की
 बस यही फ़रियाद करती हूँ 
मै जब तनहा बैठती हूँ
 तो तुमको याद करती हूँ |