हम चले पर कैसे चले कुछ पता ही न चला
जिंदगी की आपाधापी में कब
निकल गया बचपन हमारा यारों कुछ पता ही न चला...!
साथ में खेलने वाले बच्चे कब साथ छोड़ दिए पता ही न चला
प्राइमरी स्कूल से शुरू हुआ था सफ़र अपना
कब कॉलेज तक पहुच गए कुछ पता ही न चला ...!!
साइकिल के पैड़ल मारते हुए
हापते हुए जाते थे उस वक़्त
कब से बस में सफ़र करने लगे
यारों कुछ पता ही न चला ..,
कभी हुआ करते थे जिम्मेदारी हम माँ -बाप की
कब जिम्मेदार बनने का सोचने लगे
कुछ पता ही न चला ..😍👩👩
एक दौर था जो कभी भी बेखबर,
बेवक्त सो जाया करते थे
कब रातों की नींद उड़ गयी पता ही न चला ..!!
😫😫😪😕
जिन बचपन की सहेलियों पर कभी इतराते थे हम,
कब वो एक बच्चे की
माँ बन गयी पता ही न चला ...
👼👥
दर -दर भटक रहें हैं नौकरी की खातिर
कब इतने बड़े हो गए पता ही न चला ...
💁💁💁👀
अपनों के लिए कमाने और बचाने की
सोचने में इतने मशगूल हुए हम
की कब अपने इतनी दूर हो गए पता ही न चला ..
👤👤👤💔💔😕
अपने पूरे परिवार से सीना चौड़ा रखते थे हम
भाई -बहनों पर गुमान किया करते थे हम
उन सबका साथ कब छूट गया परिवार कबसे
इतना अलग हो गया कुछ पता ही न चला ...
👪👪👭👬😔
मेरे खेलने के शोर से पूरा मोहल्ला जाग उठता था,
कब ओ मेरी आवाज़ को तरसने लगा पता ही न चला ..
👀 👀 👀💗💖
माँ जब छड़ी लेकर दौडाती थी
हम किसी के भी घर में भी घुस जाते थे ,
आज कब हम इतने बड़े हो गए कुछ पता ही न चला..
🙏🙏🙏
मोहल्ले के बुजुर्गों से खूब
किस्से -कहानियां सुना करते थे हम
कब ओ सब हमसे दूर चले गये पता ही न चले ..!
😒😒😒😒😒
अब सोच रहे थे मिले उन सभी लोगों से जो दूर हो गए
पर कितने हमारे बीच नहीं रहे कुछ पता ही न चला
कुछ पता ही न चला ,कुछ पता ही न चला ...!!
😔😔😔😔😔
"हद ये गाँव से निकली तो
शहर -शहर चली ,
कुछ यादे मेरे संग पावं-पावं चली ,
सफ़र ये धूप का किया तो ये तजुर्बा हुआ
वो जिंदगी ही क्या जो छावं -छावं चली |
"आंशू न होते तो ये पलके गीली न होती
दर्द न होता तो ख़ुशी की कीमत न होती
मिल जाता सबकुछ दुनिया में चाहने से
तो हमे ऊपर वाले की जरुरत न होती |
0 टिप्पणियाँ