HAN MAI HI THI YE LADKI



HAN MAI HI THI YE LADKI       


न दुनिया की समझ ,न ही सही गलत का फर्क

न तजुर्बा न समझदारी बड़ी कमसिन थी ये

तूफान में कस्तियाँ उतारे बड़ी मासूम थी ये

प्यार की कमाई से घर -घर खेलती

वो मीरा सी लड़की थी ये




चाँद से दिल लगाकर जमी से वफ़ा मांगती

हवाओं से लड़ने वाली ये पतंग सी लड़की

जब आँख खुली तब थी नहीं ये अब भी छोटी सी लड़की

दिल को हाथों में परोस देने वाली ये भोली सी लड़की

सुना है कुछ भारी सा गुज़रा था इसके नरम सीने के ऊपर से

अब जरा कम ही हँसती है ये मनमोजी सी लड़की




हकीकत दरवाजे पर दस्तक दे रही थी

भला ये पलक झबकाती तो किसके लिए

ये सपनो में जीने वाली लड़की

समेट कर अपनी आबरू फिर कलम उठाएगी

और लिख डालेगी अपनी कहानी ये जिद्दी सी लड़की




पुर्जा पुर्जा कर जोड़ेगी ये खुद को

हिम्मत कर फिर दिल लगाएगी ये दिलेर सी लड़की




लफ़्ज़ों को ढाल बनाकर हर मुका पायेगी

मन ही मन बातें करने वाली ये किताबों सी लड़की

तीखी सी मीठी सी आईने में देखूं तो हूबहू मैं ही थी ये लड़की

हाँ मैं ही थी ये लड़की ,हाँ मैं ही थी ये लड़की

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