एक बेटी का दर्द |
एक छोटी कली ,कीचड में पड़ी
माँ- माँ कहकर है पुकार रही
था दर्द जो उसके सीने में
कैसे खुद को है कोस रही
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क्यों जन्म दिया ये खुडा उसको
जो न दुनिया की रही न माँ की रही
था एक फरिस्ता गुज़र रहा
उसने भी मुह फेर लिया
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मन ही मन बड- बड करने लगा
ये किसका पाप है कहकर कोस दिया
बेदर्द भरे एस जमाने ने न माँ की सुनी
न बेटी की सुनी
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हर पल हर लम्हे दर्द भरे
कैसे जीती एक माँ की सुनो
जमाने ने माँ को सताया है
दहेज़ के लालच में
बहू बेटियों को जिन्दा जलाया है
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क्या उसका कोई प्यार नहीं
क्या उसको जीने का अधिकार नहीं
क्यों रोका टोकी करते है
क्यों बाहर जाने से रोकते हैं
क्यों उसको जीने नहीं देते हैं
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क्यों घर में उसे बिठाते हैं
सबका जीवन अनमोल है
फिर क्यों करता ये पाप है
इंसानों में इन्सान नहीं
क्या ऐसा कोई बाप है ?
बच्चा |
2 टिप्पणियाँ
Sahi baat h kaash hum betiyon ko koi bhi itna begana na smjhe
जवाब देंहटाएंBhut achi poem h I like it
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